साँस साथ छोडेगी, सुर सजा ना पाऊँगा|
तान भावना की है, शब्द-शब्द दर्पण है,
बाँसुरी चली आओ, होट का निमन्त्रण है|
तुम बिना हथेली की हर लकीर प्यासी है,
तीर पार कान्हा से दूर राधिका सी है|
दूरियाँ समझती हैं दर्द कैसे सहना है?
आँख लाख चाहे पर होठ को ना कहना है|
औषधी चली आओ, चोट का निमन्त्रण है,
बाँसुरी चली आओ होठ का निमन्त्रण है|
तुम अलग हुयीं मुझसे साँस की खताओं से,
भूख की दलीलों से, वक़्त की सजाओं ने|
रात की उदासी को, आँसुओं ने झेला है,
कुछ गलत ना कर बैठे मन बहुत अकेला है|
कंचनी कसौटी को खोट ना निमन्त्रण है|
बाँसुरी चली आओ होठ का निमन्त्रण है|
By:- Dr. Kumar Vishwas
1 comment:
कुमार जी के सुमधुर कंठ से इस गीत को सुनने का आनन्द ही अलग है.
आभार गीत पढ़वाने का.
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