Wednesday, December 22, 2010

आओगी तुम मुस्कराकर

बीता रात का तीसरा पहर
तुम नहीं आए
आधा हुआ चंदा पिघलकर
तुम नहीं आए

मै अकेला हूँ यहाँ पर
यादो की चादर ओढ़कर
रात भर पीता रहा
ओस में चाँदनी घोलकर

फूल खिले है ताज़ा या तुम
अपने होठ भिगोए हो
हवा हुई है गीली-सी क्यों
शायद तुम भी रोए हो

अब सही जाती नहीं प्रिय
एक पल की भी जुदाई
देखकर बैठा अकेला
मुझ पे हँसती है जुन्हाई

बुलबुलें भी उड़ गई हैं
रात सारी गीत गाकर
किन्तु मुझको है भरोसा
आओगी तुम मुस्कराकर

किन्तु मुझको है भरोसा
आओगी तुम मुस्कराकर


By:- पवन कुमार मिश्र

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