वोह कहते था मुझसे बहुत याद आयेंगे वो दिन..
जब छोड़ जाओगे हमे...
वोह कैंटीन की सीढिया होंटों पे सिगरेट ...
हाथो में चाए की प्याली चेहरे पे थी हर वक़्त,
खुशियों भरी लाली ...
थे लफडे भी हमारे बहुत कभी सीनियरों से झगडा ...
तो कभी लड़कियों से रगडा जो थी हमारी खुशिया ..
वोह रही नहीं अब हमारी
क्लास में भी थी हमारी मस्ती टीचर भी थे हमारे अजीब...
बन जाते थे हमारे ही रकीब अंदाज़ था उनका अपना
लो.....आप है यहाँ ?
अब हम हैं कहाँ ?
लड़कियों की टोलिया कोई थी काले नकाबो में...
तो कुछ थी बिना हिजाबों में..
भटक रहा हु अब कहाँ .....
शहर की तपती धुप में ...
कोलतार की लम्बी चौडी सड़के ऊँची उनकी इमारतें...
रोज़ बिकते लोग बिकती संस्कृति...
बिकता यहाँ त्याग और बलिदान भी ....
सच...
कितने खुश थे हम दोस्तों की दोस्ती..
और हर वक़्त थी मस्ती, चीज़ें भी सस्ती ..
जाने कहाँ गए वोह दिन !!!!!!!
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