निगाहों से जरा-सा वो करे यूँ वार चुटकी में
हिले ये सल्तनत सारी, गिरे सरकार चुटकी में
न मंदिर की ही घंटी से, न मस्जिद की अज़ानों से
करे जो इश्क, वो समझे जगत का सार चुटकी में
कहो सीखे कहाँ से हो अदाएँ मौसमी तुम ये
कभी इन्कार चुटकी मे,कभी इक़रार चुटकी मे
झटककर ज़ुल्फ़ को अपनी, कभी कर के नज़र नीची
सरे-रस्ता करे वो हुस्न का व्योपार चुटकी में
नहीं दरकार है मुझको, करूँ क्यों सैर दुनिया की
तेरे पहलु में देखूँ जब, दिशाएँ चार चुटकी में
कई रातें जो जागूँ मैं तो मिसरा एक जुड़ता है
उधर झपके पलक उनकी, बने अशआर चुटकी में
हुआ अब इश्क ये आसान बस इतना समझ लीजे
कोई हो आग का दरिया, वो होवे पार चुटकी में
By:- " गौतम राजरिशी "
Wednesday, June 15, 2011
उनको हमसे प्यार है
ख़बर मिली है जब से ये कि उनको हमसे प्यार है
नशे में तब से चांद है, सितारों में ख़ुमार है
मैं रोऊँ अपने कत्ल पर, या इस ख़बर पे रोऊँ मैं
कि कातिलों का सरगना तो हाय मेरा यार है
ये जादू है लबों का तेरे या सरूर इश्क का
कि तू कहे है झूठ और हमको ऐतबार है
सुलगती ख़्वाहिशों की धूनी चल कहीं जलाएँ और
कुरेदना यहाँ पे क्या, ये दिल तो जार-जार है
ले मुट्ठियों में पेशगी महीने भर मजूरी की
वो उलझनों में है खड़ा कि किसका क्या उधार है
बनावटी ये तितलियाँ, ये रंगों की निशानियाँ
न भाए अब मिज़ाज को कि उम्र का उतार है
भरी-भरी निगाह से वो देखना तेरा हमें
नसों में जलतरंग जैसा बज उठा सितार है
तेरे वो तीरे-नीमकश में बात कुछ रही न अब
ख़लिश तो दे है तीर, जो जिगर के आर-पार है
By:- "गौतम राजरिशी"
नशे में तब से चांद है, सितारों में ख़ुमार है
मैं रोऊँ अपने कत्ल पर, या इस ख़बर पे रोऊँ मैं
कि कातिलों का सरगना तो हाय मेरा यार है
ये जादू है लबों का तेरे या सरूर इश्क का
कि तू कहे है झूठ और हमको ऐतबार है
सुलगती ख़्वाहिशों की धूनी चल कहीं जलाएँ और
कुरेदना यहाँ पे क्या, ये दिल तो जार-जार है
ले मुट्ठियों में पेशगी महीने भर मजूरी की
वो उलझनों में है खड़ा कि किसका क्या उधार है
बनावटी ये तितलियाँ, ये रंगों की निशानियाँ
न भाए अब मिज़ाज को कि उम्र का उतार है
भरी-भरी निगाह से वो देखना तेरा हमें
नसों में जलतरंग जैसा बज उठा सितार है
तेरे वो तीरे-नीमकश में बात कुछ रही न अब
ख़लिश तो दे है तीर, जो जिगर के आर-पार है
By:- "गौतम राजरिशी"
हैं वो हमारे यूँ तो
एक मुद्दत से हुए हैं वो हमारे यूँ तो
चांद के साथ ही रहते हैं सितारे, यूँ तो
तू नहीं तो न शिकायत कोई, सच कहता हूँ
बिन तेरे वक़्त ये गुज़रे न गुज़ारे यूँ तो
राह में संग चलूँ ये न गवारा उसको
दूर रहकर वो करे ख़ूब इशारे यूँ तो
नाम तेरा कभी आने न दिया होंठों पर
हाँ, तेरे ज़िक्र से कुछ शेर सँवारे यूँ तो
तुम हमें चाहो न चाहो, ये तुम्हारी मर्ज़ी
हमने साँसों को किया नाम तुम्हारे यूँ तो
ये अलग बात है तू हो नहीं पाया मेरा
हूँ युगों से तुझे आँखों में उतारे यूँ तो
साथ लहरों के गया छोड़ के तू साहिल को
अब भी जपते हैं तेरा नाम किनारे यूँ तो
By:- " गौतम राजरिशी "
चांद के साथ ही रहते हैं सितारे, यूँ तो
तू नहीं तो न शिकायत कोई, सच कहता हूँ
बिन तेरे वक़्त ये गुज़रे न गुज़ारे यूँ तो
राह में संग चलूँ ये न गवारा उसको
दूर रहकर वो करे ख़ूब इशारे यूँ तो
नाम तेरा कभी आने न दिया होंठों पर
हाँ, तेरे ज़िक्र से कुछ शेर सँवारे यूँ तो
तुम हमें चाहो न चाहो, ये तुम्हारी मर्ज़ी
हमने साँसों को किया नाम तुम्हारे यूँ तो
ये अलग बात है तू हो नहीं पाया मेरा
हूँ युगों से तुझे आँखों में उतारे यूँ तो
साथ लहरों के गया छोड़ के तू साहिल को
अब भी जपते हैं तेरा नाम किनारे यूँ तो
By:- " गौतम राजरिशी "
Monday, June 13, 2011
पीने को बैठे याद तेरी आ गई
शाम जब पीने को बैठे याद तेरी आ गई
जख़्मे दिल सीने को बैठे याद तेरी आ गई
भूलना तुझ को जो चाहा खो के अपने आप में
ख़ुद से हम मिलने को बैठे याद तेरी आ गई
हमने सोचा मौत को यूँ मात दे देंगे अभी
चाल जब चलने को बैठे याद तेरी आ गई
जब किसी हमदर्द ने पूछा कहो क्या हाल है
हाले दिल कहने को बैठे याद तेरी आ गई
देख ले 'योगेन्द्र' मैं तेरे बिना पल-पल मरा
बिन तेरे जीने को बैठे याद तेरी आ गई
जख़्मे दिल सीने को बैठे याद तेरी आ गई
भूलना तुझ को जो चाहा खो के अपने आप में
ख़ुद से हम मिलने को बैठे याद तेरी आ गई
हमने सोचा मौत को यूँ मात दे देंगे अभी
चाल जब चलने को बैठे याद तेरी आ गई
जब किसी हमदर्द ने पूछा कहो क्या हाल है
हाले दिल कहने को बैठे याद तेरी आ गई
देख ले 'योगेन्द्र' मैं तेरे बिना पल-पल मरा
बिन तेरे जीने को बैठे याद तेरी आ गई
गज़ल होती है
आदमी ख़ुद से मिला हो तो गज़ल होती है
ख़ुद से ही शिकवा-गिला हो तो गज़ल होती है
अपने जज्ब़ात को लफ्जों में पिरोने वालो
डूब कर शेर कहा हो तो गज़ल होती है
गैर से मिलके जहाँ ख़ुद को भूल जाये कोई
कभी ऐसा भी हुआ हो तो गज़ल होती है
दिल के ठहरे हुए ख़ामोश समन्दर में कभी
कोई तुफान उठा हो तो गज़ल होती है
बेसबब याद कोई बैठे-बिठाये आये
लब पे मिलने की दुआ हो तो गज़ल होती है
सिर्फ आती है सदा दूर तलक कोई नहीं
उस तरफ कोई गया हो तो गज़ल होती है
देखो ‘योगेन्द्र' ज़रा गौर से सुनना उसको
गुनगुनाती सी हवा हो तो गज़ल होती है
ख़ुद से ही शिकवा-गिला हो तो गज़ल होती है
अपने जज्ब़ात को लफ्जों में पिरोने वालो
डूब कर शेर कहा हो तो गज़ल होती है
गैर से मिलके जहाँ ख़ुद को भूल जाये कोई
कभी ऐसा भी हुआ हो तो गज़ल होती है
दिल के ठहरे हुए ख़ामोश समन्दर में कभी
कोई तुफान उठा हो तो गज़ल होती है
बेसबब याद कोई बैठे-बिठाये आये
लब पे मिलने की दुआ हो तो गज़ल होती है
सिर्फ आती है सदा दूर तलक कोई नहीं
उस तरफ कोई गया हो तो गज़ल होती है
देखो ‘योगेन्द्र' ज़रा गौर से सुनना उसको
गुनगुनाती सी हवा हो तो गज़ल होती है
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