आदमी ख़ुद से मिला हो तो गज़ल होती है
ख़ुद से ही शिकवा-गिला हो तो गज़ल होती है
अपने जज्ब़ात को लफ्जों में पिरोने वालो
डूब कर शेर कहा हो तो गज़ल होती है
गैर से मिलके जहाँ ख़ुद को भूल जाये कोई
कभी ऐसा भी हुआ हो तो गज़ल होती है
दिल के ठहरे हुए ख़ामोश समन्दर में कभी
कोई तुफान उठा हो तो गज़ल होती है
बेसबब याद कोई बैठे-बिठाये आये
लब पे मिलने की दुआ हो तो गज़ल होती है
सिर्फ आती है सदा दूर तलक कोई नहीं
उस तरफ कोई गया हो तो गज़ल होती है
देखो ‘योगेन्द्र' ज़रा गौर से सुनना उसको
गुनगुनाती सी हवा हो तो गज़ल होती है
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