Saturday, December 31, 2011

Wo is kadar kyun royi maloom nahi…..!!!!!!!



Kya hai wafa kya bewafayi maloon nahi

Wo apni thi ya paraayi maloom nahi,,

Maiyyat pe hazir the jabke dost-o-dushman

Ek wo kyun nahi aayi maloom nahi,,

Puchha jo logo ne mere marne ka sabab

Nazar usne kyun jhukaayi maloom nahi,,

Mohabbat nahi thi to baad mere jane k

Wo is kadar kyun royi maloom nahi….:( :( :( :( :( :( :(
Wo is kadar kyun royi maloom nahi….:( :( :( :( :( :( :(

Koi Bhi Doosra Hum Sa Deewana Ho Nahin Sakta…!!!!!


Usay Keh Do Woh Mera Hai,, Begaana Ho Nahin Sakta
Bohat Nayaab Hai,, Uss Jesa Zamaana Ho Nahin Sakta…

Tumhare Saath Jo Guzra Woh Mausam Yaad Aata Hai,,
Tumhare Baad Ka Mausam Suhaana Ho Nahin Sakta…

Chhupaanay Se Nahin Chhupta,, Dikhaanay Se Nahin Dikhta,,
Yeh Aatish e Ishq Hai,, Iss Mein Bahaana Ho Nahin Sakta…

Tu Dil Pe Naqsh Ho Jaaye,, Nigaahon Mein Samaa Jaaye,,
Ke Iss Dil Mein Kisi Ka Phir Se Aana Ho Nahin Sakta…

Bohat Hein Chaahnay Waalay Tere,, Humne Suna Hai Par,,
Koi Bhi Doosra Hum Sa Deewana Ho Nahin Sakta…!!!!!!!!

Saturday, November 12, 2011

Zindagi Me Kuch Paya Or Kuch Khoya




Zindagi Me Kuch Paya Or Kuch Khoya
Lakin Tujhe Khona Nhi Chahtha Maa

Zindagi Ne Kabhi Hasaya Or Kabhi Rulaya
Lakin Tuje Rulana Nhi Chahtha Maa

Yaad Aati Hai bohot Tere Bachpan Ki Wo Lori
IsiLiye Teri God K alawa Kahin Or Sona Nhi Chahtha Maa

Kitna daanta Tune Bachpan Me
Ab Q Nhi Daant'tii Tu Mujhe Maa

Kaise Zinda Reh Paonga Mai Tere Baghair
Kabhi Fursat Mile Mujhe To Ye To Bta Maa

Kya Hoon Mai Tere Dil Main Ab Tak?
Kabhi Toh Dekh Mere Dil Ko Cheer K Apne Aap Ko Maa

Zindagi Tune To Meri Roshan Kar Di
Lekin Khud Kiss Andhere Main Kho Gayi Tu Maa

Kabhi Toh Khila Muja Apne Hath Ki Roti
Aaj Kal Bhuk Bohoth Lagthi Hai Mujhe Maa

Kahaan Ho Tum, A Kar Lagalo Gale Iss Bebas BETE Ko
Na Jane Kis wqt Nikal Jaye Meri Saans Maa........

Friday, November 11, 2011

Apne haathon ki lakeeron mein basale mujh ko


Apne haathon ki lakeeron mein basale mujh ko
Main hoon tera naseeb apna banale mujh ko

Mujh se tu pochne aaya hai wafa ke mane
Ye teri saada diili maar na daale mujh ko

Main samundar bhi hoon moti bhi hoon ghota zan bhi hoon
Koyee bhi naam mera le kar bulale mujh ko

Tu ne dekha nahiin aayene se aage kuch bhi
khud parasti mein kahin na ganwale mujh ko

Kal ki baat aur hai ab sa rahoon ya na rahoon
Jitna ji chahe tera aaj satale mujh ko

Khud ko main baant na daaloon kahin daaman daaman
Kar diya agar tune mere hawale mujh ko

Main jo kaanta hoon to chal mujh se bacha kar daaman
Main hoon agar phool to jodey mein sajale mujh ko

Main khuley dar ke kisi ghar ka hoon saamaan piyare
Tu dabe paon kabhi aakar churale mujh ko

Tark ulfat ki Qassam bhi koyee hoti hai Qassam
Tu kabhi yaad to kar bhoolne wale mujh ko

Baada phir baada hai main zaher bhi pii jaon Qateel
Shart ye hai ke koyee banhon mein sambhale mujh ko

Wednesday, November 09, 2011

Sirf Tum Se Hai..!!!

Meri muhabbat mere jazbaat Sirf Tum Se Hai
Dekho meri kainaat Sirf Tum Se Hai
Oron se mein pochne ka haq nahein rakhti
Mere sawalat mere jawabat Sirf Tum Se Hai
Tum ko maloom hi nahein meri tanhai ka
dukh Meri sochein mere khyalat Sirf Tum Se Hein
Tum sath ho to muqaddar pe hakomat apni
Mere har rishte ki sougaat Sirf Tum Se Hai
Gar kabhi bikhar jaon to samait lena mujh ko
Hai mukammal jo meri zaat Sirf Tum Se Hai..

Apne haathon ki lakeeron mein basale mujh ko

Apne haathon ki lakeeron mein basale mujh ko
Main hoon tera naseeb apna banale mujh ko

Mujh se tu pochne aaya hai wafa ke mane
Ye teri saada diili maar na daale mujh ko
...
Main samundar bhi hoon moti bhi hoon ghota zan bhi hoon
Koyee bhi naam mera le kar bulale mujh ko

Tu ne dekha nahiin aayene se aage kuch bhi
khud parasti mein kahin na ganwale mujh ko

Kal ki baat aur hai ab sa rahoon ya na rahoon
Jitna ji chahe tera aaj satale mujh ko

Khud ko main baant na daaloon kahin daaman daaman
Kar diya agar tune mere hawale mujh ko

Main jo kaanta hoon to chal mujh se bacha kar daaman
Main hoon agar phool to jodey mein sajale mujh ko

Main khuley dar ke kisi ghar ka hoon saamaan piyare
Tu dabe paon kabhi aakar churale mujh ko

Tark ulfat ki Qassam bhi koyee hoti hai Qassam
Tu kabhi yaad to kar bhoolne wale mujh ko

Baada phir baada hai main zaher bhi pii jaon Qateel
Shart ye hai ke koyee banhon mein sambhale mujh ko

Dil Me Jagah Di Hoti

Koi ilzam Lga Kr To Saza Di Hoti
Phir Meri Lash Sare-Bazar Jala Di Hoti
Itni Nafrat Thi To Piyar Se Dekha Kioun Tha
Mjhe Pehle Hi Meri Okat Bata Di Hoti
Dekh Kar Zakham Mere Ankhain Chura Li Tu ne
Poch Kar Kuch To Zkhmon Ki Dawa Di Hoti
So Jate ham B Chain Se Jana
Tu Ne Agar Shoq Se Aanchal Ko Hawa Di Hoti
Zindagi Apni B Chain Se Guzar Jani Thi

Tu Ne Agar Pyar Se Dil Main Jaga Di Ho

Wednesday, June 15, 2011

निगाहों से ज़रा सा

निगाहों से जरा-सा वो करे यूँ वार चुटकी में
हिले ये सल्तनत सारी, गिरे सरकार चुटकी में

न मंदिर की ही घंटी से, न मस्जिद की अज़ानों से
करे जो इश्क, वो समझे जगत का सार चुटकी में

कहो सीखे कहाँ से हो अदाएँ मौसमी तुम ये
कभी इन्कार चुटकी मे,कभी इक़रार चुटकी मे

झटककर ज़ुल्फ़ को अपनी, कभी कर के नज़र नीची
सरे-रस्ता करे वो हुस्न का व्योपार चुटकी में

नहीं दरकार है मुझको, करूँ क्यों सैर दुनिया की
तेरे पहलु में देखूँ जब, दिशाएँ चार चुटकी में

कई रातें जो जागूँ मैं तो मिसरा एक जुड़ता है
उधर झपके पलक उनकी, बने अशआर चुटकी में

हुआ अब इश्क ये आसान बस इतना समझ लीजे
कोई हो आग का दरिया, वो होवे पार चुटकी में

By:- " गौतम राजरिशी "

उनको हमसे प्यार है

ख़बर मिली है जब से ये कि उनको हमसे प्यार है
नशे में तब से चांद है, सितारों में ख़ुमार है

मैं रोऊँ अपने कत्ल पर, या इस ख़बर पे रोऊँ मैं
कि कातिलों का सरगना तो हाय मेरा यार है

ये जादू है लबों का तेरे या सरूर इश्क का
कि तू कहे है झूठ और हमको ऐतबार है

सुलगती ख़्वाहिशों की धूनी चल कहीं जलाएँ और
कुरेदना यहाँ पे क्या, ये दिल तो जार-जार है

ले मुट्ठियों में पेशगी महीने भर मजूरी की
वो उलझनों में है खड़ा कि किसका क्या उधार है

बनावटी ये तितलियाँ, ये रंगों की निशानियाँ
न भाए अब मिज़ाज को कि उम्र का उतार है

भरी-भरी निगाह से वो देखना तेरा हमें
नसों में जलतरंग जैसा बज उठा सितार है

तेरे वो तीरे-नीमकश में बात कुछ रही न अब
ख़लिश तो दे है तीर, जो जिगर के आर-पार है

By:- "गौतम राजरिशी"

हैं वो हमारे यूँ तो

एक मुद्‍दत से हुए हैं वो हमारे यूँ तो
चांद के साथ ही रहते हैं सितारे, यूँ तो

तू नहीं तो न शिकायत कोई, सच कहता हूँ
बिन तेरे वक़्त ये गुज़रे न गुज़ारे यूँ तो

राह में संग चलूँ ये न गवारा उसको
दूर रहकर वो करे ख़ूब इशारे यूँ तो

नाम तेरा कभी आने न दिया होंठों पर
हाँ, तेरे ज़िक्र से कुछ शेर सँवारे यूँ तो

तुम हमें चाहो न चाहो, ये तुम्हारी मर्ज़ी
हमने साँसों को किया नाम तुम्हारे यूँ तो

ये अलग बात है तू हो नहीं पाया मेरा
हूँ युगों से तुझे आँखों में उतारे यूँ तो

साथ लहरों के गया छोड़ के तू साहिल को
अब भी जपते हैं तेरा नाम किनारे यूँ तो

By:- " गौतम राजरिशी "

Monday, June 13, 2011

पीने को बैठे याद तेरी आ गई

शाम जब पीने को बैठे याद तेरी आ गई
जख़्मे दिल सीने को बैठे याद तेरी आ गई

भूलना तुझ को जो चाहा खो के अपने आप में
ख़ुद से हम मिलने को बैठे याद तेरी आ गई

हमने सोचा मौत को यूँ मात दे देंगे अभी
चाल जब चलने को बैठे याद तेरी आ गई

जब किसी हमदर्द ने पूछा कहो क्या हाल है
हाले दिल कहने को बैठे याद तेरी आ गई

देख ले 'योगेन्द्र' मैं तेरे बिना पल-पल मरा
बिन तेरे जीने को बैठे याद तेरी आ गई

गज़ल होती है

आदमी ख़ुद से मिला हो तो गज़ल होती है
ख़ुद से ही शिकवा-गिला हो तो गज़ल होती है

अपने जज्ब़ात को लफ्जों में पिरोने वालो
डूब कर शेर कहा हो तो गज़ल होती है

गैर से मिलके जहाँ ख़ुद को भूल जाये कोई
कभी ऐसा भी हुआ हो तो गज़ल होती है

दिल के ठहरे हुए ख़ामोश समन्दर में कभी
कोई तुफान उठा हो तो गज़ल होती है

बेसबब याद कोई बैठे-बिठाये आये
लब पे मिलने की दुआ हो तो गज़ल होती है

सिर्फ आती है सदा दूर तलक कोई नहीं
उस तरफ कोई गया हो तो गज़ल होती है

देखो ‘योगेन्द्र' ज़रा गौर से सुनना उसको
गुनगुनाती सी हवा हो तो गज़ल होती है

Saturday, April 09, 2011

ग़ज़ल सुन के परेशां हो गए क्या

ग़ज़ल सुन के परेशां हो गए क्या,
किसी के ध्यान में तुम खो गए क्या,

ये बेगाना-रवी पहले नहीं थी,
कहो तुम भी किसी के हो गए क्या,

ना पुरसीश को ना समझाने को आए,
हमारे यार हम को रो गए क्या,

अभी कुछ देर पहले तक यहीं थी,
ज़माना हो गया तुमको गए क्या,

किसी ताज़ा रफ़ाक़त की ललक है,
पुराने ज़ख़्म अच्छे हो गए क्या,

पलट कर चाराग़र क्यों आ गए हैं,
शबे-फ़ुर्क़त के मारे सो गए क्या,

‘फ़राज़’ इतना ना इतरा होसले पर,
उसे भूले ज़माने हो गए क्या,

By: "फ़राज़"

Wednesday, March 16, 2011

हाँ, कोई और होगा तूने जो देखा होगा

हाँ, कोई और होगा तूने जो देखा होगा
हम नहीं आग से बच-बचके गुज़रने वाले

न इन्तज़ार, न आहट, न तमन्ना, न उमीद
ज़िन्दगी है कि यूँ बेहिस हुई जाती है

इतना कह कर बीत गई हर ठंडी भीगी रात
सुखके लम्हे, दुख के साथी, तेरे ख़ाली हात

हाँ, बात कुछ और थी, कुछ और ही बात हो गई
और आँख ही आँख में तमाम रात हो गई

कई उलझे हुए ख़यालात का मजमा है यह मेरा वुजूद
कभी वफ़ा से शिकायत कभी वफ़ा मौजूद

जिन्दगी आँख से टपका हुआ बेरंग कतरा
तेरे दामन की पनाह पाता तो आंसु होता

By:- Meena Kumari

ख़याल उसका हर एक लम्हा

ख़याल उसका हर एक लम्हा मन में रहता है
वो शमअ बनके मेरी अंजुमन में रहता है।

कभी दिमाग में रहता है ख़्वाब की मानिंद
कभी वो चाँद की सूरत , गगन में रहता है।

वो बह रहा है मेरे जिस्म में लहू बनकर
वो आग बनके मेरे तन-बदन में रहता है।

मैं तेरे पास हूँ, परदेस में हूँ,ख़ुश भी हूँ
मगर ख़याल तो हरदम वतन में रहता है।

ये बात सच है चमन से निकल के प्यार मिला
मगर वो फूल जो खिल कर चमन में रहता है।

Friday, March 11, 2011

काँटे तो काँटे होते हैं

काँटे तो काँटे होते हैं उनके चुभने का क्या रोना ।
मुझको तो अखरा करता है फूलों का काँटों-सा होना ।

युग-युग तक उनकी मिट्टी से फूलों की ख़ुशबू आती है
जिनका जीवन ध्येय रहा है कांटे चुनना कलियाँ बोना ।

बदनामी के पर होते हैं अपने आप उड़ा करती है
मेरे अश्रु बहें बह जाएँ तुम अपना दामन न भिगोना ।

दुनिया वालों की महफ़िल में पहली पंक्ति उन्हें मिलती है
जिनको आता है अवसर पर छुपकर हँसना बन कर रोना ।

वाणी के नभ में दिनकर-सा ‘उदय’ नहीं तू हो सकता है
अगर नहीं तूने सीखा है नये घावों में क़लम डुबोना ।

By:- "उदयप्रताप सिंह"

जिनसे हम छूट गये

जिनसे हम छूट गये अब वो जहां कैसे हैं
शाखे गुल कैसे हैं खुश्‍बू के मकां कैसे हैं ।।

ऐ सबा तू तो उधर से ही गुज़रती होगी
उस गली में मेरे पैरों के निशां कैसे हैं ।।

कहीं शबनम के शगूफ़े कहीं अंगारों के फूल
आके देखो मेरी यादों के जहां कैसे हैं ।।

मैं तो पत्‍थर था मुझे फेंक दिया ठीक किया
आज उस शहर में शीशे के मकां कैसे हैं ।।

जिनसे हम छूट गये अब वो जहां कैसे हैं ।।
By:- "राही मासूम रज़ा"

मैं तो झोंका हूँ

मैं तो झोंका हूँ हवा का उड़ा ले जाऊँगा
जागती रहना तुझे तुझसे चुरा ले जाऊँगा

हो के कदमों पे निछावर फूल ने बुत से कहा
ख़ाक में मिल के भी मैं खुश्बू बचा ले जाऊँगा

कौन सी शै मुझको पहुँचाएगी तेरे शहर तक
ये पता तो तब चलेगा जब पता ले जाऊँगा

कोशिशें मुझको मिटाने की भले हों कामयाब
मिटते-मिटते भी मैं मिटने का मजा ले जाऊँगा

शोहरतें जिनकी वजह से दोस्त दुश्मन हो गये
सब यह रह जायेंगी मैं साथ क्या ले जाऊँगा

By: Dr. Kumar Vishwas

Wednesday, March 02, 2011

चंद शेर

उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो
न जाने किस गली में ज़िन्दगी की शाम हो जाये ।
--
ज़िन्दगी तूने मुझे कब्र से कम दी है ज़मीं
पाँव फैलाऊँ तो दीवार में सर लगता है ।
--
जी बहुत चाहता है सच बोलें
क्या करें हौसला नहीं होता ।
--
दुश्मनी जम कर करो लेकिन ये गुँजाइश रहे
जब कभी हम दोस्त हो जायें तो शर्मिन्दा न हों ।
--
एक दिन तुझ से मिलनें ज़रूर आऊँगा
ज़िन्दगी मुझ को तेरा पता चाहिये ।
--
इतनी मिलती है मेरी गज़लों से सूरत तेरी
लोग तुझ को मेरा महबूब समझते होंगे ।
--
वो ज़ाफ़रानी पुलोवर उसी का हिस्सा है
कोई जो दूसरा पहने तो दूसरा ही लगे ।
--
लोग टूट जाते हैं एक घर बनाने में
तुम तरस नहीं खाते बस्तियां जलानें में।
--
पलकें भी चमक जाती हैं सोते में हमारी,
आँखों को अभी ख्वाब छुपाने नहीं आते ।
--
तमाम रिश्तों को मैं घर पे छोड़ आया था.
फिर उस के बाद मुझे कोई अजनबी नहीं मिला ।
--
मैं इतना बदमुआश नहीं यानि खुल के बैठ
चुभने लगी है धूप तो स्वेटर उतार दे ।

By :- "बशीर बद्र"

सोचा नहीं अच्छा बुरा देखा सुना कुछ भी नहीं

सोचा नहीं अच्छा बुरा देखा सुना कुछ भी नहीं
मांगा खुदा से रात दिन तेरे सिवा कुछ भी नहीं

देखा तुझे सोचा तुझे चाहा तुझे पूजा तुझे
मेरी ख़ता मेरी वफ़ा तेरी ख़ता कुछ भी नहीं

जिस पर हमारी आँख ने मोती बिछाये रात भर
भेजा वही काग़ज़ उसे हमने लिखा कुछ भी नहीं

इक शाम की दहलीज़ पर बैठे रहे वो देर तक
आँखों से की बातें बहुत मुँह से कहा कुछ भी नहीं

दो चार दिन की बात है दिल ख़ाक में सो जायेगा
जब आग पर काग़ज़ रखा बाकी बचा कुछ भी नहीं

अहसास की ख़ुश्बू कहाँ आवाज़ के जुगनू कहाँ
ख़ामोश यादों के सिवा घर में रहा कुछ भी नहीं
By:- "बशीर बद्र"

Wednesday, February 02, 2011

Kya Pata Kal Ho Na Ho?

"आज एक बार सबसे मुस्करा के बात करो
बिताये हुये पलों को साथ साथ याद करो
क्या पता कल चेहरे को मुस्कुराना
और दिमाग को पुराने पल याद हो ना हो

आज एक बार फ़िर पुरानी बातो मे खो जाओ
आज एक बार फ़िर पुरानी यादो मे डूब जाओ
क्या पता कल ये बाते
और ये यादें हो ना हो

बारीश मे आज खुब भीगो
झुम झुम के बचपन की तरह नाचो
क्या पता बीते हुये बचपन की तरह
कल ये बारीश भी हो ना हो

आज हर काम खूब दिल लगा कर करो
उसे तय समय से पहले पुरा करो
क्या पता आज की तरह
कल बाजुओं मे ताकत हो ना हो

आज एक बार चैन की नीन्द सो जाओ
आज कोई अच्छा सा सपना भी देखो
क्या पता कल जिन्दगी मे चैन
और आखों मे कोई सपना हो ना हो

क्या पता
कल हो ना हो…

By:- "Mandeep Singh"

Sunday, January 30, 2011

जाने कहाँ गए वोह दिन!!!!!!!

वोह कहते था मुझसे बहुत याद आयेंगे वो दिन..

जब छोड़ जाओगे हमे...



वोह कैंटीन की सीढिया होंटों पे सिगरेट ...

हाथो में चाए की प्याली चेहरे पे थी हर वक़्त,

खुशियों भरी लाली ...



थे लफडे भी हमारे बहुत कभी सीनियरों से झगडा ...

तो कभी लड़कियों से रगडा जो थी हमारी खुशिया ..

वोह रही नहीं अब हमारी



क्लास में भी थी हमारी मस्ती टीचर भी थे हमारे अजीब...

बन जाते थे हमारे ही रकीब अंदाज़ था उनका अपना

लो.....आप है यहाँ ?

अब हम हैं कहाँ ?



लड़कियों की टोलिया कोई थी काले नकाबो में...

तो कुछ थी बिना हिजाबों में..

भटक रहा हु अब कहाँ .....

शहर की तपती धुप में ...



कोलतार की लम्बी चौडी सड़के ऊँची उनकी इमारतें...

रोज़ बिकते लोग बिकती संस्कृति...

बिकता यहाँ त्याग और बलिदान भी ....



सच...

कितने खुश थे हम दोस्तों की दोस्ती..

और हर वक़्त थी मस्ती, चीज़ें भी सस्ती ..

जाने कहाँ गए वोह दिन !!!!!!!

Friday, January 28, 2011

कौन-सी बात कहाँ, कैसे कही जाती है

कौन-सी बात कहाँ, कैसे कही जाती है
ये सलीक़ा हो, तो हर बात सुनी जाती है

जैसा चाहा था तुझे, देख न पाये दुनिया
दिल में बस एक ये हसरत ही रही जाती है

एक बिगड़ी हुई औलाद भला क्या जाने
कैसे माँ-बाप के होंठों से हँसी जाती है

कर्ज़ का बोझ उठाये हुए चलने का अज़ाब
जैसे सर पर कोई दीवार गिरी जाती है

अपनी पहचान मिटा देना हो जैसे सब कुछ
जो नदी है वो समंदर से मिली जाती है

पूछना है तो ग़ज़ल वालों से पूछो जाकर
कैसे हर बात सलीक़े से कही जाती है

By:- "वसीम बरेलवी"

मैं इस उम्मीद पे डूबा के तू बचा लेगा

मैं इस उम्मीद पे डूबा के तू बचा लेगा
अब इसके बाद मेरा इम्तेहान क्या लेगा

ये एक मेला है वादा किसी से क्या लेगा
ढलेगा दिन तो हर एक अपना रास्ता लेगा

मैं बुझ गया तो हमेशा को बुझ ही जाऊँगा
कोई चराग़ नहीं हूँ जो फिर जला लेगा

कलेजा चाहिए दुश्मन से दुश्मनी के लिए
जो बे-अमल है वो बदला किसी से क्या लेगा

मैं उसका हो नहीं सकता बता न देना उसे
सुनेगा तो लकीरें हाथ की अपनी वो सब जला लेगा

हज़ार तोड़ के आ जाऊँ उस से रिश्ता वसीम
मैं जानता हूँ वो जब चाहेगा बुला लेगा
By:- "वसीम बरेलवी"

तुझको सोचा तो पता हो गया

तुझको सोचा तो पता हो गया रुसवाई को
मैंने महफूज़ समझ रखा था तन्हाई को

जिस्म की चाह लकीरों से अदा करता है
ख़ाक समझेगा मुसव्विर तेरी अँगडाई को

अपनी दरियाई पे इतरा न बहुत ऐ दरिया ,
एक कतरा ही बहुत है तेरी रुसवाई को

चाहे जितना भी बिगड़ जाए ज़माने का चलन,
झूठ से हारते देखा नहीं सच्चाई को

साथ मौजों के सभी हो जहाँ बहने वाले ,
कौन समझेगा समन्दर तेरी गहराई को.

By:- "वसीम बरेलवी"

मैं अपने ख़्वाब से बिछ्ड़ा नज़र नहीं आता

मैं अपने ख़्वाब से बिछ्ड़ा नज़र नहीं आता
तू इस सदी में अकेला नज़र नहीं आता

अजब दबाव है इन बाहरी हवाओं का
घरों का बोझ भी उठता नज़र नहीं आता

मैं इक सदा पे हमेशा को घर छोड़ आया
मगर पुकारने वाला नज़र नहीं आता

मैं तेरी राह से हटने को हट गया लेकिन
मुझे तो कोई भी रस्ता नज़र नहीं आता

धुआँ भरा है यहाँ तो सभी की आँखों में
किसी को घर मेरा जलता नज़र नहीं आता.

By:- "वसीम बरेलवी"

Saturday, January 22, 2011

झुकी झुकी सी नज़र बेक़रार है कि नहीं

झुकी झुकी सी नज़र बेक़रार है कि नहीं
दबा दबा सा सही दिल में प्यार है कि नहीं |
तू अपने दिल की जवाँ धड़कनों को गिन के बता
मेरी तरह तेरा दिल बेक़रार है कि नहीं ||
वो पल के जिस में मुहब्बत जवान होती है
उस एक पल का तुझे इंतज़ार है कि नहीं ||
तेरी उम्मीद पे ठुकरा रहा हूँ दुनिया को
तुझे भी अपने पे ये ऐतबार है कि नहीं ||

By:- "कैफ़ी आज़मी"

कोई ये कैसे बता ये के वो तन्हा क्यों हैं

कोई ये कैसे बता ये के वो तन्हा क्यों हैं
वो जो अपना था वो ही और किसी का क्यों हैं
यही दुनिया है तो फिर ऐसी ये दुनिया क्यों हैं
यही होता हैं तो आखिर यही होता क्यों हैं ||

एक ज़रा हाथ बढ़ा, दे तो पकड़ लें दामन
उसके सीने में समा जाये हमारी धड़कन
इतनी क़ुर्बत हैं तो फिर फ़ासला इतना क्यों हैं ||

दिल-ए-बरबाद से निकला नहीं अब तक कोई
एक लुटे घर पे दिया करता हैं दस्तक कोई
आस जो टूट गयी फिर से बंधाता क्यों हैं ||

तुम मसर्रत का कहो या इसे ग़म का रिश्ता
कहते हैं प्यार का रिश्ता हैं जनम का रिश्ता
हैं जनम का जो ये रिश्ता तो बदलता क्यों हैं ||

By:- "कैफ़ी आज़मी"

चोटों पे चोट

चोटों पे चोट देते ही जाने का शुक्रिया
पत्थर को बुत की शक्ल में लाने का शुक्रिया ||

जागा रहा तो मैंने नए काम कर लिए
ऐ नींद आज तेरे न आने का शुक्रिया ||

सूखा पुराना ज़ख्म नए को जगह मिली
स्वागत नए का और पुराने का शुक्रिया ||

आतीं न तुम तो क्यों मैं बनाता ये सीढ़ियाँ
दीवारों, मेरी राह में आने का शुक्रिया ||

आँसू-सा माँ की गोद में आकर सिमट गया
नज़रों से अपनी मुझको गिराने का शुक्रिया ||

अब यह हुआ कि दुनिया ही लगती है मुझको घर
यूँ मेरे घर में आग लगाने का शुक्रिया ||

ग़म मिलते हैं तो और निखरती है शायरी
यह बात है तो सारे ज़माने का शुक्रिया ||

अब मुझको आ गए हैं मनाने के सब हुनर
यूँ मुझसे रूठ के जाने का शुक्रिया ||
By:- "कुँअर बेचैन"

मौत तो आनी है

मौत तो आनी है तो फिर मौत का क्यों डर रखूँ
जिंदगी आ, तेरे क़दमों पर मैं अपना सर रखूँ ||

जिसमें माँ और बाप की सेवा का शुभ संकल्प हो
चाहता हूँ मैं भी काँधे पर वही काँवर रखूँ ||

हाँ, मुझे उड़ना है लेकिन इसका मतलब यह नहीं
अपने सच्चे बाज़ुओं में इसके-उसके पर रखूँ ||

आज कैसे इम्तहाँ में उसने डाला है है मुझे
हुक्म यह देकर कि अपना धड़ रखूँ या सर रखूँ ||

कौन जाने कब बुलावा आए और जाना पड़े
सोचता हूँ हर घड़ी तैयार अब बिस्तर रखूँ ||

ऐसा कहना हो गया है मेरी आदत में शुमार
काम वो तो कर लिया है काम ये भी कर रख रखूँ ||

खेल भी चलता रहे और बात भी होती रहे
तुम सवालों को रखो मैं सामने उत्तर रखूँ ||

By:- "कुँअर बेचैन"