Wednesday, November 24, 2010

तुम अगर नहीं आयीं

तुम अगर नहीं आयीं, गीत गा ना पाऊँगा|
साँस साथ छोडेगी, सुर सजा ना पाऊँगा|

तान भावना की है, शब्द-शब्द दर्पण है,
बाँसुरी चली आओ, होट का निमन्त्रण है|

तुम बिना हथेली की हर लकीर प्यासी है,
तीर पार कान्हा से दूर राधिका सी है|

दूरियाँ समझती हैं दर्द कैसे सहना है?
आँख लाख चाहे पर होठ को ना कहना है|

औषधी चली आओ, चोट का निमन्त्रण है,
बाँसुरी चली आओ होठ का निमन्त्रण है|

तुम अलग हुयीं मुझसे साँस की खताओं से,
भूख की दलीलों से, वक़्त की सजाओं ने|

रात की उदासी को, आँसुओं ने झेला है,
कुछ गलत ना कर बैठे मन बहुत अकेला है|

कंचनी कसौटी को खोट ना निमन्त्रण है|
बाँसुरी चली आओ होठ का निमन्त्रण है|

By:- Dr. Kumar Vishwas

1 comment:

Udan Tashtari said...

कुमार जी के सुमधुर कंठ से इस गीत को सुनने का आनन्द ही अलग है.

आभार गीत पढ़वाने का.