Wednesday, December 22, 2010

इक बार कहो ना मीत मेरे.

इक बात चाहता हूँ सुनना
तुम जब-जब बाते करती हो
इक बार कहो ना मीत मेरे
तुम मुझसे मुहब्बत करती हो

इस दिल को कैसे समझाऊँ
लोगो को क्या मैं बतलाऊँ
है पूछ रहा ये जग सारा
तुम मेरी क्या लगती हो

इक बार कहो ना मीत मेरे
तुम मुझसे मुहब्बत करती हो

इक नए विश्व कि रचना कर दूँ
और अंतहीन आकाश बना दूँ
इक बार काँपते होठों से
तुम कह दो मेरी धरती हो

इक बार कहो ना मीत मेरे
तुम मुझसे मुहब्बत करती हो

याद तुम्हारी छू जाती है
मन में अकुलाहट भर जाती है
इस पार हूँ मै उस पार खड़ी तुम
बीच में नदिया बहती है

इक बार कहो ना मीत मेरे
तुम मुझसे मुहब्बत करती हो

बात ज़बाँ की दिल कहता है
कहो ना कहो ये सब सुनता है
चाँद बताता है मुझको तुम
सदियों से मुझ पर मरती हो

इक बार कहो ना मीत मेरे
तुम मुझसे मुहब्बत करती हो

By:- पवन कुमार मिश्र

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