Saturday, August 07, 2010

लड़खड़ाते हुए तुमने जिसे देखा होगा!!

लड़खड़ाते हुए तुमने जिसे देखा होगा
वो किसी शाख़ से टूटा हुआ पत्ता होगा

अजनबी शहर मैं सब कुछ ख़ुशी से हार चले
कल इसी बात पे घर-घर मेरा चर्चा होगा

ग़म नहीं अपनी तबाही का मुझे दोस्त मगर
उम्र भर वो भी मेरे प्यार को तरसा होगा

दामने ज़ीस्त फिर भीगा हुआ-सा आज लगे
फिर कोई सब्र का बादल कहीं बरसा होगा

क़ब्र मैं आ के सो गया हूँ इसलिए अय तपिश
उनकी गलियों मैं मरूंगा तो तमाशा होगा

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